ज्ञान ज्योति सावित्रीबाई फुले की प्रेरणादायक जीवनी, कड़े संघर्ष के बाद बनी थी पहली भारतीय महिला शिक्षक

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ज्ञान ज्योति सावित्रीबाई फुले की प्रेरणादायक जीवनी


 19 वीं सदी में भारतीय महिलाओं को बहुत ही कठिन और दयनीय स्थिति से गुजरना पड़ता था. उस दौर में महिलाओं को पुरुषवादी वर्चस्व को झेलना पड़ता था. और समाज की रूढ़िवादी सोच के कारण तरह-तरह की यातनाएं व अत्याचार को सहनना पड़ता था. शिक्षा तो दूर घर से बाहर घूंघट उठाकर बात करना भी आसान नहीं होता था.


इस विषम परिस्तिथि में स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह जैसी कुरीतियों पर आवाज उठाने में समाज सेविका सावित्रीबाई फुले का बहुत बड़ा योगदान रहा हैं. उन्होंने महिलाओं को सामाजिक शोषण से मुक्त करने व उनके समान शिक्षा व अवसरों के लिए पुरजोर प्रयास किया.


इस लेख में क्रांतिज्योती सावित्रीबाई फुले के जीवन के बारे में जानेंगे कि, कैसे उन्होंने अपने जीवन में संघर्ष करते हुए अपनी मंजिल पाई.


ज्ञान ज्योति सावित्रीबाई फुले की प्रेरणादायक जीवनी, कड़े संघर्ष के बाद बनी थी पहली भारतीय महिला शिक्षक


सावित्रीबाई फुले का परिचय


सावित्रीबाई फुले 19 वीं सदी की महिला रत्न हैं. उनके द्वारा महिलाओं और गरीबों के लिए किया गया काम वास्तव में क्रांतिकारी हैं. सावित्रीबाई का जीवन भारत की पहली शिक्षिका, अध्यापिका, अनाथ बच्चों की माँ और महिला मुक्ति आंदोलन की पहली अग्रणी के रूप में अमर हुआ हैं. सावित्रीबाई, महात्मा ज्योतिबा फुले द्वारा प्रज्वलित दिव्य ज्योति हैं. 


सावित्रीबाई को देश की पहली महिला शिक्षक, समाज सेविका, कवियित्री और वंचितों की आवाज बुलंद करने वाली क्रांतिज्योति के तौर पर जाना जाता हैं. सावित्रीबाई को भारत में स्त्री शिक्षा की जननी के रूप में भी जाना जाता हैं.


ज्योतिबा की तरह ही उन्होंने उग्र विरोध और उत्पीड़न से लड़कर सच्चाई, समानता और मानवता के लिए लड़ाई लड़ी. उन्होंने दुनिया को दिखाया कि महिलाएं इंसान हैं, और पुरुषों की तरह ही सक्षम हैं. उनके कामों ने भारत के सांस्कृतिक इतिहास में एक नया मानक स्थापित किया.

सावित्रीबाई का जन्म और विवाह


3 जनवरी, 1831 को महाराष्ट्र के पुणे-सतारा मार्ग पर स्थित नायगांव में एक दलित परिवार में सावित्रीबाई का जन्म हुआ था. उनके पिता का नाम खण्डोजी नेवसे था, जो गावं के पाटील थे. और माता का नाम लक्ष्मीबाई था.

सावित्रीबाई का विवाह 1840 में मात्र 9 साल की उम्र में ही 13 साल के ज्योतिराव फुले के साथ हुआ. 


सावित्रीबाई फुले की शिक्षा


उस समय की एक घटना के अनुसार, एक दिन सावित्रीबाई एक अंग्रेजी किताब के पन्ने पलट रही थी, तभी उसके पिता की नजर उन पर पड़ी. तो वह दौड़ता हुआ आया और उसके हाथ से किताब छीन ली. और दूर फेंक दी. बस उसी दिन उन्होंने ठान लिया कि, कुछ भी हो जाए एक दिन जरुर पढ़ना-लिखना सीखूंगी. उस वक्त शिक्षा का अधिकार केवल उच्च जाति के पुरुषों को ही था. दलितों और महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करना एक पाप समान था. 


सावित्रीबाई विवाह के समय अनपढ़ थी. और उनके पति ज्योतिबा केवल 3 री कक्षा तक ही पढ़े-लिखे थे. लेकिन शादी के बाद ज्योतिबा ने उन्हें पढ़ना और लिखना सिखाया. शिक्षा लेना महिलाओं के लिए अच्छा नहीं हैं कहकर, ज्योतिबा के परिवार वालों ने सावित्रीबाई की शिक्षा का कड़ा विरोध किया. 


और ज्योतिबा के परिवार ने पुराने रीति-रिवाजों और समाज के डर से दोनों को बेदखल कर दिया था, लेकिन ज्योतिबा ने सावित्रीबाई की शिक्षा जारी रखी. शुरुआत में ज्योतिबा, एक आम के पेड़ के निचे सावित्रीबाई और एक अन्य छात्र को पढ़ाता था.


महिलाओं को शिक्षा देने की शुरुआत ज्योतिबा ने ही की थी. उनका कहना था, "अगर कोई महिला सीखती है, तो  दहलीज का दीपक अंदर और बाहर चमकता है, वहीं ससुर शिक्षित हो जाता है." ज्योतिबा ने सावित्रीबाई को शिक्षित किया. और बाद में सावित्रीबाई ने पुणे के अध्यापक प्रशिक्षण विद्यालय में ट्रेनिंग ली.


पहली भारतीय महिला शिक्षक


अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, सावित्रीबाई समाज में महिलाओं को शिक्षित करने के लिए इस शिक्षा का उपयोग करने का विचार लेकर आईं, लेकिन यह विचार किसी चुनौती से कम नहीं था, क्योंकि उस समय महिलाओं को अध्ययन करने की अनुमति नहीं थी.


महिलाओं को शिक्षित करने के लिए सावित्रीबाई ने कड़ा संघर्ष किया. और अपने पति ज्योतिबा के साथ मिलकर 1 जनवरी, 1848 को, पुणे के बुधवारपेठ के भिदेवाड़ा में पहला लड़कियों का स्कूल शुरू किया. और वह देश की पहली महिला शिक्षिका बन गई. 


सावित्रीबाई और ज्योतिबा द्वारा शुरू किए गए पहले लड़कियों के स्कूल में शुरुआत में सिर्फ 6 लड़कियां ही थी. लेकिन बाद में, स्कूल में लड़कियों की संख्या बढ़ कर 40-45 हो गई. अछूत समुदायों की लड़कियों की संख्या महत्वपूर्ण थी. इस दौरान, घर से स्कूल की जाते वक्त सावित्रीबाई को कई कड़वे अनुभवों का सामना करना पड़ता था.


घर से स्कूल जाते समय सामाजिक उपद्रवि उनका विरोध करते हुए, उन पर कूड़ा, पत्थर यहाँ तक की गोबर भी फेकने लगे. इससे हताश होकर कभी कभी सावित्रीबाई कहती, "मैं अब इसे बर्दाश्त नहीं कर सकती." उसी वक्त उनके पति ज्योतिबा उन्हें धैर्य देते हुए कहते थे, "अगर ज्योतिबा का प्रकाश बुझने का फैसला करता है, तो अंधेरा कैसे मिटेगा. किसी भी अच्छे काम को पहले अवहेलना, फिर जिज्ञासा और अंत में स्वीकृति मिलती ही हैं."


सावित्रीबाई पर गोबर, पत्थर और कूड़ा फेंककर, भले ही उनका अपमान किया गया हो, लेकिन वह अपने दृढ़ निश्चय से डरी नहीं, अपने लक्ष्य से भटक नहीं पाई. उसने आत्मविश्वास के साथ हर मौके का सामना किया और अपने दिमाग में महिलाओं की शिक्षा की लौ जलाए रखी.


महिलाओं के लिए शिक्षा के क्षेत्र में सावित्रीबाई की इस महत्वपूर्ण योगदान के बौदलत आज के इस दौर में जिस प्रकार महिलाएं प्रगति की ओर अग्रसर हो रही हैं, वह गर्व और सराहना की बात हैं. महिलाएं आज पुरुष वर्ग के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उन्नति कर रही हैं. आज ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां आज की नारी अपनी उपस्थिति दर्ज न करा रही हो. राजनीति, टेक्नोलोजी, सुरक्षा समेत हर क्षेत्र में जहां जहां महिलाओं ने हाथ आजमाया उसे कामयाबी ही मिली.


कई स्कूलों का निर्माण


सावित्रीबाई ने ज्योतिबा की मदद से, बिना किसी वित्तीय सहायता के 1 जनवरी 1848 से 15 मार्च 1852 तक लड़कियों के लिए 18 स्कूल शुरू किए.  1849 में, उन्होंने मुस्लिम महिलाओं और बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से, पुणे में उस्मान शेख नामक एक मुस्लिम भाई के घर पर एक स्कूल शुरू किया.


महिलाओं की शिक्षा के लक्ष्य से प्रेरित होकर, सावित्रीबाई ने इस क्षेत्र में काम करना जारी रखा. 16 नवंबर 1852 को, सावित्रीबाई और ज्योतिबा को शिक्षा के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा विधिवत सम्मानित किया गया था.


सावित्रीबाई फुले का समाज कार्य


सावित्रीबाई का कार्य महिलाओं के शिक्षा तक ही सिमित नहीं था. उन्होंने दलित उत्थान, अस्पृश्यता को रोकने, बाल विवाह, सती प्रथा और विधवा पुनर्विवाह की पहल के बारे में कई उल्लेखनीय कार्य भी किए. उन्होंने शूद्र, अति शूद्र और स्त्री शिक्षा की शुरुआत की और एक नए युग की नींव रखी.


उन्होंने महिला अधिकारों से संबंधित मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए महिला सेवा मंडल की स्थापना की. उन्होंने महिलाओं के लिए एक सभा स्थल का भी आह्वान किया जो जातिगत भेदभाव या किसी भी तरह के भेदभाव से मुक्त था. इस बात का प्रतीक था कि उपस्थित सभी महिलाएँ एक ही चटाई पर बैठी थीं. उन्होंने बाल विवाह के खिलाफ भी अभियान चलाया और विधवा पुनर्विवाह की वकालत की. सावित्रीबाई और ज्योतिराव ने सती प्रथा का कड़ा विरोध किया, 


महात्मा ज्योतिराव फुले ने 28 जनवरी, 1853 को गर्भवती बलात्कार पीड़ितों के लिए, बाल हत्या रोकने के लिए रोकथाम गृह का निर्माण किया.वहीं 24 सितंबर, 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की. सावित्रीबाई फुले इस सत्यशोधक समाज की बहुत समर्पित कार्यकर्ता थीं. यह संस्था न्यूनतम खर्च पर दहेज रहित और बिना पंडित-पुरोहितों के विवाह आयोजित करती थी. 


सत्यशोधक समाज संस्था के तहत जो भी शादियाँ होती थी उन शादियों का सारा खर्च फुले दांपत्य ही उठाते थे. 4 फरवरी, 1879 को, सावित्रीबाई ने अपने दत्तक पुत्र की शादी भी उसी तरीके से की. इस विवाह का पूरे देश के पुजारियों ने भारी विरोध किया और अदालत गए. जिससे फुले दंपत्ति को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. लेकिन, वे इससे विचलित नहीं थे.


 सावित्रीबाई फुले बतौर कवयित्री 


सावित्रीबाई को समाज में एक प्रखर लेखिका और कवयित्री के रूप में भी जाना जाता है. उन्होंने 1854 में "काव्यफुले" और 1892 में "बावन काशी सुबोधरत्नाकर"  कवितासंग्र प्रकाशित किए.


वहीं उन्होंने "गो, गेट एजुकेशन" नामक एक कविता प्रकाशित की, जिसके जरिए उन्होंने शिक्षा प्राप्त कर के खुद को मुक्त करने के लिए उत्पीड़ित लोगों को प्रोत्साहित किया. 


सावित्रीबाई फुले मृत्यु


ज्योतिबा फुले के निधन के बाद भी, सावित्रीबाई ने अपना समाज कार्य जारी रखा. लेकिन 1897 में, पुणे में भयानक "प्लेग" का प्रसार हुआ. इस दौरान सावित्रीबाई ने अपनी जान की परवाह किए बगैर मरीजों की देखभाल करना जारी रखा. इसी दौरान उन्हें भी प्लेग का संक्रमण हुआ. जिसके कारण 10 मार्च, 1897 को उनका निधन हो गया.


सावित्रीबाई फुले के नाम पर दिए जाने वाले पुरस्कार


  • कवी नारायण सुर्वे पब्लिक लाइब्रेरी द्वारा दिया जाने वाला 'क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले राष्ट्रीय पुरस्कार'
  • सामाजिक कार्यों के लिए पिंपरी-चिंचवड़ नगर निगम का 'सावित्रीबाई फुले पुरस्कार'. यह पुरस्कार वर्ष 2011-12 से एक सामाजिक कार्यकर्ता को दिया जाता है, जिसने महिलाओं और बाल कल्याण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है.पुरस्कार में 5,001 रुपये नकद, एक प्रमाण पत्र, एक शॉल और एक क्वीन शामिल हैं.
  • महाराष्ट्र सरकार की ओर से दिया जाने वाला 'सावित्रीबाई फुले पुरस्कार'
  • चिंचवाड़गांव में महात्मा फुले मंडल का 'क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले पुरस्कार'
  • सावित्रीबाई तेजस कला महात्मा फुले प्रतिभा सम्मान अकादमी (पुणे) द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार
  • क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले 'आदर्श माता पुरस्कार'
  • क्रांतिज्योति सावित्रीबाई 'आदर्श शिक्षा पुरस्कार'
  • मध्य प्रदेश सरकार का  सर्वश्रेष्ठ शिक्षक के लिए 1 लाख रुपये का वार्षिक 'सावित्रीबाई पुरस्कार' (2012 से)
  • सावित्रीबाई फुले महिला मंडल द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं के लिए स्त्रीरत्न पुरस्कार: आदर्श माता रत्न, उद्योग रत्न, कला रत्न, क्रीड़ा रत्न, क्रीड़ा रत्न, जिद्दी रत्न, पत्राकारिता रत्न, प्रशासनिक रत्न, वीरपत्नी रत्न, शिक्षा रत्न.
  • मराठी प्रेस परिषद का सावित्रीबाई फुले पुरस्कार
  • महाराष्ट्र नर्सिंग काउंसिल की ओर से सर्वश्रेष्ठ नर्स को दिया जाने वाला सावित्रीबाई फुले पुरस्कार
  • महाराष्ट्र साहित्य परिषद की सासवद शाखा द्वारा सामाजिक / शैक्षणिक कार्य के लिए सावित्रीबाई पुरस्कार
  • माई फ्रेंड्स ट्रस्ट की ओर से दिया जाने वाला सावित्रीबाई फुले पुरस्कार
  • यूनाइटेड ओबीसी फोरम का सावित्रीबाई फुले वैचारिक साहित्यिक पुरस्कार
  • लोकमत सखी मंच और वसई के प्रगति समाज शिक्षण संस्थान द्वारा दिया गया सावित्रीबाई फुले पुरस्कार

तो आशा करते हैं आपको 'भारत में नारी शिक्षा की जननी सावित्रीबाई फुले की प्रेरणादायक जीवनी' काफी पसंद आई होगी. आपको यह लेख कैसा लगा कमेंट में जरुर बताए.


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