क्या होता हैं MSP, जानिए फुल फॉर्म, इतिहास और लाभ

क्या होता हैं MSP, जानिए फुल फॉर्म, इतिहास और लाभ
क्या होता हैं MSP


2020 में संसद में जब से कृषि संशोधन अध्यादेश आये हैं तब से एमएसपी (MSP) काफी चर्चा में हैं. और जबसे ये अध्यादेश दोनों सदनों में पास हुए हैं, तब से किसान और कृषि से जुड़े संगठन धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं. किसान और कृषि से जुड़े संगठनों का मानना हैं कि, इन अध्यादेशों के कारण एमएसपी (MSP) व्यवस्था ख़त्म हो जायेगी. तो आखिर जिस MSP व्यवस्था के लिए किसान धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं, वह एमएसपी (MSP) क्या हैं?

आज के इस लेख में हम किसानों को मिलने वाली एमएसपी के बारे में बात करेंगे.


एमएसपी का फुल फॉर्म

MSP : Minimum Support Price

हिंदी में 'न्यूनतम समर्थन मूल्य'


MSP क्या हैं यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या हैं?

MSP या न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी वह न्यूनतम मूल्य जो फसल बाजार में आने से पहले ही उस फसल का मूल्य सरकार निरधारित कर देती हैं. और अगर उन फसलों की कीमत बाजार के हिसाब से गिर भी जाए तब भी केंद्र सरकार तय MSP यानि न्यूनतम समर्थन मूल्य के तहत ही किसानों से खरीदती हैं.


एमएसपी का इतिहास 

भारत को आझादी मिलने के बाद यानी 1950 और 60 के दशक में भी किसान अच्छी स्थिति में नहीं था. उस वक्त किसान मेहनत और लागत का दाम भी निकाल नहीं पाता था. कभी फसल की उत्पादन ज्यादा होती तो कीमतों में काफी गिरावट देखने को मिलती. ऐसे में किसान को भारी नुकसान का सामना करना पड़ता था. ऐसे में सरकार ने फसलों की कीमत तय करने के बारे में सोचा.

1964 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने एलके झा के नेतृत्व में खाद्य अनाज मूल्य समिति का गठन किया. इस समिति में एलके झा के अलावा टीपी सिंह, बीएन आधारकर,एमएल दंतवाला और एससी चौधरी भी शामिल थे.

खाद्य अनाज मूल्य समिति ने 24 सितंबर 1964 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी. प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कृषि मंत्रालय और राज्य सरकारों से बात कर के अनाज पर MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करते हुए 24 दिसंबर 1964 को इस पर मुहर लगा दी. पर लागु नहीं हो सकी.

बाद में भारत सरकार के सचिव बी शिवकुमार ने 19 अक्तूबर 1965 को खाद्य अनाज मूल्य समिति के रिपोर्ट पर अंतिम मुहर लगाई. जिसके बाद 1966-67 में पहली बार गेहूं और धान पर एमएसपी तय की गई. उसके बाद वर्ष में दो बार सरकार द्वारा कृषि लागत एवं मूल्य आयोग की संस्तुति पर एमएसपी की घोषणा की जाती हैं.


MSP कौन तय करता हैं?

एमएसपी का तय कृषि लागत एवं मूल्य आयोग Commission for Agricultural Costs and Prices (CACP)
करता हैं. 


एमएसपी कैसे तय की जाती हैं?

साल 2009 से यह आयोग लागत, मांग, मूल्यों में परिवर्तन, आपूर्ति की स्थिति, अलग-अलग लागत, मंडी मूल्यों का रुख, खेत और परिवार के श्रम का खर्च और अन्तराष्ट्रीय बाजार के मूल्यों के आधार पर एमएसपी का निर्धारण करता हैं.


MSP का उद्देश्य या लाभ

1) MSP के जरिए सरकार का मुख्य उद्देश्य हैं कि, किसानों के हितों का रक्षण करना और किसानों का नुकसान होने से बचाना. यानी अगर कोई किसान कोई भी फसल बोए और बाद में उसे बाजार में बेचने जाए तब अगर उस फसल का मूल्य बहुत ही कम हो,
तो ऐसे वक्त पर किसान को बड़े नुकसान का सामना करना पड़ सकता हैं. लेकिन MSP के तहत किसान तय न्यूनतम समर्थन मूल्य में उस फसल को बेच सकता हैं. और अपनी लागत निकाल सकता हैं.

2) किसानों को बिचौलियों के शोषण से बचाकर उनकी उपज का सही मूल्य प्रधान करना.

3) किसानों में कृषि की नयी तकनीक को लोकप्रिय बनाने में मदद  

4) एक सामाजिक न्याय के कदम के रूप में भी देखा जा सकता है.


किन फसलों पर मिलती हैं एमएसपी?

मुख्य रूप से एमएसपी कुल 24 फसलों पर मिलता हैं. जिसमें, धान, गेहूं, जौ, बाजरा, ज्वार, मक्का, रागी, चना, अरहर, सोयाबीन, मुग, मसूर, उड़द, मूंगफली,सरसों, तिल, सूरजमुखी बीज, काला तिल, गन्ना, जुट और कोपरा आदि.


तो आशा करते हैं आपको एमएसपी के बारे में पूरी जानकारी मिली होगी. आपको यह लेख कैसा लगा. कमेंट सेक्शन में जरुर शेयर करे. धन्यवाद

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